परिचय
नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET) भारत में मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश का प्रमुख द्वार है। हर साल लाखों छात्र इस परीक्षा की तैयारी करते हैं, जिसमें कोचिंग और कॉलेज शुल्क दोनों शामिल हैं। हाल के वर्षों में, निजी मेडिकल कॉलेजों में MBBS शुल्क में भारी वृद्धि ने छात्रों और उनके परिवारों पर आर्थिक दबाव बढ़ाया है। यह लेख NEET शिक्षा शुल्क की वर्तमान स्थिति, इसके कारणों, प्रभावों और संभावित समाधानों पर प्रकाश डालता है।
निजी मेडिकल कॉलेजों में शुल्क वृद्धि
हाल की रिपोर्ट्स के अनुसार, 36 डीम्ड यूनिवर्सिटीज ने अपने MBBS शुल्क में वृद्धि की है, जिसमें से 32 में कुल शुल्क अब 1 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है । उत्तर प्रदेश में, 17 निजी मेडिकल कॉलेजों ने MBBS शुल्क में 1.55 लाख से 5.50 लाख रुपये तक की वार्षिक वृद्धि की है, जबकि MD और MS पाठ्यक्रमों के लिए शुल्क में 10 लाख रुपये तक की वृद्धि हुई है । कुछ कॉलेजों में प्रबंधन और NRI कोटा के तहत शुल्क और भी अधिक है, जो प्रति वर्ष 25,000 अमेरिकी डॉलर तक हो सकता है।
नीचे दी गई तालिका निजी कॉलेजों में शुल्क संरचना का एक उदाहरण दर्शाती है:
संस्थान | शुल्क (प्रति वर्ष) | टिप्पणी |
---|---|---|
डीम्ड यूनिवर्सिटी | 20-30 लाख रुपये | प्रबंधन/NRI कोटा में अधिक |
निजी कॉलेज | 8.25-16.5 लाख रुपये | हाल की वृद्धि: 1.55-5.50 लाख रुपये |
क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर | 56,330 रुपये | सबसे सस्ता निजी कॉलेज |
सरकारी कॉलेजों की तुलना
सरकारी मेडिकल कॉलेज, जैसे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), मेडिकल शिक्षा को किफायती बनाते हैं। AIIMS में MBBS का कुल शुल्क लगभग 6,000 रुपये है, जिसमें अकादमिक और हॉस्टल शुल्क शामिल हैं। शुल्क का विवरण इस प्रकार है:
शुल्क प्रकार | राशि (रुपये में) |
---|---|
पंजीकरण शुल्क | 25 |
सावधानी राशि | 100 |
ट्यूशन शुल्क | 1,350 |
प्रयोगशाला शुल्क | 90 |
छात्र संघ शुल्क | 63 |
हॉस्टल किराया | 990 |
कुल (लगभग) | 6,000 |
हालांकि, सरकारी कॉलेजों में सीटों की संख्या सीमित है, जिसके कारण NEET में उच्च रैंक की आवश्यकता होती है। भारत में कुल 700 मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें से लगभग 50% निजी हैं, जो उच्च शुल्क वसूलते हैं।
शुल्क वृद्धि के कारण
निजी मेडिकल कॉलेजों में शुल्क वृद्धि के कई कारण हैं:
- मांग में वृद्धि: NEET के लिए 20 लाख से अधिक उम्मीदवार हर साल आवेदन करते हैं, जिससे कॉलेजों को शुल्क बढ़ाने का अवसर मिलता है।
- बुनियादी ढांचा और फैकल्टी लागत: निजी कॉलेज आधुनिक सुविधाएं और उच्च वेतन वाले शिक्षकों को नियुक्त करते हैं, जिससे लागत बढ़ती है।
- नियमन की कमी: कुछ कॉलेज सरकारी दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए शुल्क बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु में शुल्क वृद्धि को अनुचित ठहराया गया था।
- NRI और प्रबंधन कोटा: इन कोटों के तहत शुल्क सामान्य कोटे से कई गुना अधिक होता है, जो कुल लागत को बढ़ाता है।
NEET कोचिंग शुल्क
NEET की तैयारी में कोचिंग एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कोचिंग शुल्क प्रति माह 3,000 से 15,000 रुपये तक हो सकता है, जबकि ऑफलाइन कोचिंग की लागत प्रति वर्ष 1.5 लाख से 2.5 लाख रुपये तक हो सकती है। कुछ संस्थान, छात्रवृत्ति और छूट प्रदान करते हैं, जिससे लागत कम हो सकती है।
छात्रों पर प्रभाव
उच्च शुल्क का सबसे बड़ा प्रभाव मध्यम और निम्न-आय वर्ग के छात्रों पर पड़ता है। कई छात्र निजी कॉलेजों में दाखिला लेने में असमर्थ हैं और विदेशी संस्थानों, जैसे रूस, की ओर रुख कर रहे हैं, जहां MBBS का शुल्क 5-7 लाख रुपये प्रति वर्ष है। यह प्रवृत्ति भारत में मेडिकल शिक्षा की सामर्थ्य पर सवाल उठाती है।
सरकारी पहल और चुनौतियां
हालांकि सरकार ने NEET काउंसलिंग और शुल्क पारदर्शिता के लिए कुछ कदम उठाए हैं, जैसे सुप्रीम कोर्ट का निजी कॉलेजों को काउंसलिंग से पहले शुल्क प्रकटीकरण का आदेश, लेकिन निजी कॉलेजों में शुल्क नियंत्रण के लिए स्पष्ट नियमों की कमी बनी हुई है। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने 50% सीटों के लिए शुल्क निर्धारण के दिशानिर्देश जारी किए हैं, लेकिन कार्यान्वयन में कमी है।
निष्कर्ष
NEET और MBBS शिक्षा की बढ़ती लागत ने मेडिकल शिक्षा को कई छात्रों के लिए एक महंगा सपना बना दिया है। सरकार को निजी कॉलेजों में शुल्क नियंत्रण के लिए कड़े नियम लागू करने और छात्रवृत्ति योजनाओं को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। मेडिकल शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाने के लिए शिक्षा ऋण और वित्तीय सहायता को और अधिक सुलभ करना होगा। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि योग्य छात्रों का सपना आर्थिक बाधाओं के कारण अधूरा न रहे।
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